राजस्थान के शिलालेख :
राजस्थान के शिलालेख :
शिलालेख :
शिलालेखो से वंशावली तथा तिथि के अतरिक्त राजनैतिक दशा , सामाजिक तथा आर्थिक अवस्था , धरम व नेतिकता का पता चलता है . इनमे राज आज्ञा , विजय यज्ञ तथा वीर पुरुषो के बारे में पता चलता है
के बार पुस्तकों को भी शिला लेखो पे खुदवा दिया गया है . कुर्मशतक रजा भोज द्वारा रचित काव्य एक पाठ शाला में खुदे मिले है . अजमेर के चौहान रजा विग्रह राज द्वारा रचित हरकेली नाटक भी शिलालेख पर खुदवाया गया है .
अभी तक 162 शिलालेख प्राप्त हो चुके है जिसमे से 15 शिलालेखो का वर्णन दिया जा रहा है .
बिजोलिया का शिलालेख : चौहानों की उत्पति ब्राहमणों से बताई गयी है
सुंडा का शिलालेख : जालोर के चौहानों को ब्राह्मण बताता है .
अचलेश्वर का शिलालेख : चन्द्रावती के चौहानों की उत्पति ब्राहमणों से बताता है .
बैराठ का शिलालेख : इसे अशोक ने खुदवाया था ईसा से 260 साल पुराना शिलालेख है . इसमें बोद्ध धरम के प्रचार और प्रसार के बारे में बताया गया है . भारत की धार्मिक दशा का वर्णन मिलता है इससे. उस समय राजस्थान में बुध तथा ब्राह्मण धरम प्रचलित था . यह लेख प्राकृत भाषा में लिखा है.
रायरा का शिलालेख : यह मथुरा के पास मिला है . यह कुषा काल का है . इससे पता चलता है भारत के आर्यों ने विदेशियों के सम्पर्क से मूर्तिपूजा करना सीखा था .
हर्षनाथ शिलालेख : यह सीकर में हर्ष नाथ मंदिर में मिला है . इसमें 59 पंक्तिया है यह सबसे बड़ा शिलालेख है इसमें चौहानों के शासनकाल में राजपूताने की सामाजिक व आर्थिक स्तिथि के बारे में पता चलता है .
घटियाली शिलालेख : इसे 910 विक्रम संवत में खुदवाया गया . इसमें मारवाड़ और जैसलमेर का इतिहास खुदा पता है इन प्रेदेशो को मरू और माड कहते थे . हर्षवर्धन की मर्त्यु के बाद राजस्थान की राजनैतिक दशा पे प्रकाश पड़ता है .
अपराजित का शिलालेख : यह 661 में अपराजित ,में मिला था जो संस्कृत में लिखा है यह हर्ष के बाद राजस्थान के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन पर प्रकाश डालता है . इस लेख से राजस्थान की जातियों और उनके कार्यो के बारे में पता चलता है . उस समय सिचाई चमड़े के चरस से होती थिस इसका भी उसी से पता चलता है .
हंतुदी(1053) , हर्षनाथ(1030) और नाडौल(1202) के शिलालेख : यह तीनो संस्कृत में है और राजस्थान की आर्थिक दशा के बारे में प्रकाश डालते है . राजस्थान में रूपाका नाम का चंडी का सिक्का चलता था . पुष्कर एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान था और राजस्थान में शेवधर्म का बोलवाला था . साधारण लोग तो प्राकृत बोलते थे लेकिन लिखने और पढ़ने की भाषा संस्कृत थी .
जालोर के शिलालेख से पता चलता है वंहा के युवराज ने यात्रियों के लिए सराए बनवाई थी .
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