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रायगडाबद्दलचा (पण रायगडावर नसलेला!) एक हरवलेला शिलालेख! ======================= दुर्गराज रायगडावर असलेले शिलालेख आपल्याला माहीत असतात. गडावर मंदिराजवळचा संस्कृतमधला शिलालेख आपण बघितलेला असतो. पायरीवरचा ‘सेवेसी तत्पर हिरोजी इंदुलकर’ हा शिलालेख आपण वाचलेला असतो. आज जाणून घेऊयात अजून एका शिलालेखाबद्दल - जो फारसी भाषेत आहे पण ज्याबद्दल फारशी कुणास माहीती नाही - जो रायगडाबद्दलचा आहे आणि जो रायगडावर बसवायचा होता - पण ते झालं नाही. काय लिहीलं आहे त्या शिलालेखात? हे समजून घ्यायच्या आधी त्यावेळचा घटनाक्रम बघूयात.  औरंगजेबाची दख्खन दिग्विजय मोहीम जोरात सुरु होती. २५ मार्च १६८९ रोजी इतिकदखानाचा वेढा रायगडाभोवती पडायला सुरुवात झाली. सुमारे सात-सव्वासात महिने किल्लेदार चांगोजी काटकर आणि सोबत येसाजी कंकांनी तो लढवला. पण पुढे ३ नोव्हेंबर १६८९ मध्ये इतिकदखानाने रायगड जिंकला. रायगड जिंकल्यावर सूरसिंग ह्याची किल्लेदार म्हणून नेमणूक झाली. गडाखाली पाचाडची व्यवस्था फत्तेजंगखान पाहू लागला तर रायगडवाडीची व्यवस्था खैर्यतखान पाहू लागला.  जिंकलेल्या किल्ल्यांची नामांतरं करणे हा किल्ला जिंकल्यानंतरचा एक मुख्य प्

राजस्थान के शिलालेख :

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राजस्थान के शिलालेख : शिलालेख :                        शिलालेखो से वंशावली तथा तिथि के अतरिक्त राजनैतिक दशा , सामाजिक तथा आर्थिक अवस्था , धरम व नेतिकता का पता चलता है . इनमे राज आज्ञा , विजय यज्ञ तथा वीर पुरुषो के बारे में पता चलता है के बार पुस्तकों को भी शिला लेखो पे खुदवा दिया गया है . कुर्मशतक रजा भोज द्वारा रचित काव्य एक पाठ शाला में खुदे मिले है . अजमेर के चौहान रजा विग्रह राज द्वारा रचित हरकेली नाटक भी शिलालेख पर खुदवाया गया है .  अभी तक 162 शिलालेख प्राप्त हो चुके है जिसमे से 15 शिलालेखो का वर्णन दिया जा रहा है . बिजोलिया का शिलालेख  : चौहानों की उत्पति ब्राहमणों से बताई गयी है सुंडा का शिलालेख  : जालोर के चौहानों को ब्राह्मण बताता है . अचलेश्वर का शिलालेख  : चन्द्रावती के चौहानों की उत्पति ब्राहमणों से बताता है . बैराठ का शिलालेख  : इसे अशोक ने खुदवाया था ईसा से 260 साल पुराना शिलालेख है . इसमें बोद्ध धरम के प्रचार और प्रसार के बारे में बताया गया है . भारत की धार्मिक दशा का वर्णन मिलता है  इससे. उस समय राजस्थान में बुध तथा ब्राह्मण धरम प्रचलित था . यह लेख प्राकृत भाषा में लिखा
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Inscriptions to know the History of Rajasthan राजस्थान का इतिहास जानने का साधन शिलालेख राजस्थान का इतिहास जानने का साधन शिलालेख - पुरातत्व स्रोतों के अंतर्गत अन्य महत्त्वपूर्ण स्रोत अभिलेख हैं। इसका मुख्य कारण उनका तिथियुक्त एवं समसामयिक होना है। ये साधारणतः पाषाण पट्टिकाओं, स्तंभों, शिलाओं ताम्रपत्रों, मूर्तियों आदि पर खुदे हुए मिलते हैं। इनमें वंशावली, तिथियों, विजयों, दान, उपाधियों, नागरिकों द्वारा किए गए निर्माण कार्यों, वीर पुरुषों का योगदान, सतियों की महिमा आदि की मिलती है। प्रारंभिक शिलालेखों की भाषा संस्कृत है जबकि मध्यकालीन शिलालेखों की भाषा संस्कृत, फारसी, उर्दू, राजस्थानी आदि है। जिन शिलालेखों में किसी शासक की उपलब्धियों की यशोगाथा होती है, उसे ‘प्रशस्ति’ भी कहते हैं। महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित कीर्ति स्तम्भ की प्रशस्ति तथा महाराणा राजसिंह की राज प्रशस्ति विशेष महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। शिलालेखों में वर्णित घटनाओं के आधार पर हमें तिथिक्रम निर्धारित करने में सहायता मिलती है। बहुत से  शिलालेख राजस्थान के विभिन्न शासकों और दिल्ली के सुलतान तथा मुगल सम्राट के राज